Friday, July 4, 2008
Saturday, June 28, 2008
पागल
तुम पागल तो नहीं हो?
इसके जवाब में पति मुस्कुराता है
यहाँ तक कि पत्नी को बाहों में लेकर
चूमने लगता है
बाकी उनके बीच क्या होता है या क्या
नहीं होता हमें नहीं मालूम
पति कहता है फ़िर से प्लीज़ मुझे पागल कहो न
इस बार पत्नी सिर्फ़ मुस्कुराती है
ऐसे पति इतने पागल होते हैं
कि पत्नी बहुत दिनों तक उन्हें
पागल न कहे तो घबरा जाते हैं
और ऐसे हालत पैदा करते हैं कि
पत्नी को उन्हें पागल कहना ही पड़ता है
मेरे ख्याल से आप दोनों उन्हीं में से हैं।
Saturday, June 21, 2008
एवरेस्ट
इनका क्या कहना
इनको तो जी हम अपना
एवरेस्ट मानते हैं
इतना कहकर
मैं संभलता
इससे पहले
उन्होंने मुझमें
अपने झंडे गाढ दिए
और चूंकि उनके पास
कैमरे थे
तो मैंने अपनी छटा
दिखाने में भी विलंब नहीं किया ।
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Friday, June 6, 2008
जहाँ हरा होगा
जहाँ हरा होगा
वहां पीला भी होगा
गुलाबी भी होगा
वहां गंध भी होगी
उसे दूर-दूर ले जाती हवा भी होगी
और आदमी भी वहां से दूर नहीं होगा।
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Tuesday, June 3, 2008
ज़रूरत
उन्होंने ऐसा कृत्रिम दूध बनाया, जो असली दूध को मात करे। उसे पीकर लोगों को लगा कि अब गाय -भैंस-बकरी सबकी ज़रूरत नहीं रही।फ़िर उन्होंने ऐसा मांस बनाया कि लोगों को किसी भी तरह के जानवरों की ज़रूरत नहीं रही। फ़िर उन्होंने ऐसे रोबोट बनाये, जिनमें मनुष्य का एक भी दुर्गुण नहीं था और गुण सारे थे।तो मनुष्यों की ज़रूरत नहीं रही। मनुष्यों की ज़रूरत नहीं रही तो प्रकृति की ज़रूरत भी नहीं रही।पानी,पक्षी,सूरज,चाँद,तारे,कविता किसी की ज़रूरत नहीं रही।घृणा और प्रेम की ज़रूरत नहीं रही।पृथ्वी तक की ज़रूरत नहीं रही।सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में घूमनेवाले रोबोट में पता नहीं फ़िर कहाँ से क्या गडबडी आयी कि फ़िर ब्रह्माण्ड की भी ज़रूरत नहीं रही।
Thursday, May 1, 2008
क्या कव्वा भी चहचहा रहा था
आज क्या सुबह थी
क्या हवा थी
कितनी मस्ती से पक्षी चहचहा रहे थे
मैंने कहा रुको
क्या तुम्हारा मतलब ये है
कि कव्वे भी चहचहा रहे थे?
घोडों का गुनगुनाना
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उसने कहा
घोडे उस समय हिनहिना रहे थे
मैंने पूछा
तुम्हारा मतलब ये तो नहीं कि घोडे उस समय
गुनगुना नहीं रहे थे?
आकाश में रंग
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आकाश में इतने रंग थे उस दिन
कि उनका अर्थ समझना मुश्किल था
कि अपने को व्यर्थ समझना मुश्किल था।
Tuesday, April 29, 2008
पत्थरों का भी दिल होता है
पत्थरों का दिल नहीं होता ?
होता है
हमने तो ऐसे दिल भी देखे हैं
जिनकी हार्ट सर्जरी तक हो चुकी है।
धुप और छाँव
हमने सोचा कि हमारा घर धुप में होना चाहिए
फ़िर सोचा छाँव में होना चाहिए
फ़िर मुस्कराकर हमने अपने आप से कहा
पहले घर तो हो
धुप होगी तो छाँव भी चली आयेगी।
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Friday, April 11, 2008
shor
कि मुझे अपना बाहर बोलना
तक अपराध लगता है
जबकि बाहर ऐसी स्थिति है
कि चुप रहे तो गए।
Friday, April 4, 2008
गलतियाँ
और उन्हें ठीक करना भी
नई के साथ पुरानी गलतियाँ भी हम करते हैं
और हर गलती न ठीक हो सकती है
और न हम ठीक कर पाते हैं, न करना चाहते हैं
कुछ गलतियाँ करके हम पछताते हैं
और कुछ गलतियाँ हम जान बूझकर करते हैं
जैसे कि किसी यह कह देना कि यार मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
कुछ गलतियों के बारे में हमें कभी पता नहीं चलता
कई बार तो बताने पर भी हम यह जान नहीं पाते
बहरहाल मैं कसम खाता हूँ कि जब तक जिंदा हूँ गलतियाँ करता रहूँगा
अगर मैं अपनी किसी भी गलती के लिए माफी न मांगूं
तो समझना कि मैं हूँ नहीं।
Monday, March 24, 2008
ईश्वर और चुनाव
दूसरा बन्दर देखता और बोलता है मगर सुनता बिल्कुल नहीं है।
तीसरा बन्दर बोलता और सुनता है मगर देखता बिल्कुल नहीं है।
ऐसे बंदरों को देखकर आश्चर्यों के भी आश्चर्य ईश्वर को आश्चर्य हुआ और उन्होंने इन बंदरों के बारे में जिज्ञासा प्रकट की।
उन्हें मालूम हुआ कि ये गांधीजी के बन्दर हैं। दुनिया से कूच करने से पहले गांधीजी इनसे कह गए थे कि तुम्हें भविष्य में सुखी रहना है तो ऐसे ही रहना। इस बात का महत्व तुम आज नहीं समझोगे मगर जैसे-जैसे इस देश में चुनाव होते जाएंगे और लोकतंत्र `मजबूत` होता जाएगा, वैसे-वैसे तुम्हारे सामने मेरे कथनों की सच्चाई भी प्रकट होती जाएगी।
और एक दिन ऐसा आएगा कि तुम्हीं भारत के मनुष्य के आदर्श माने जाओगे। फिर एक दिन ऐसा भी आएगा कि मनुष्य फिर से बन्दर बनना चाहेगा।
Tuesday, March 18, 2008
चुहिया और बिलाव की प्रेमकथा
वह बिल में खड़ी-खड़ी बिलाव के जाने का इन्तजार करने लगी। बिलाव मगर जमा हुआ था।टस से मस नहीं हो रहा था।
चुहिया एकटक बिलाव को देखे जा रही थीकि यह मरा कब जाए और वह कब बाहर निकले। धीरे-धीरे वह भूल गई कि यह बिलाव है और वह स्वयं चुहिया है और दोनों में छत्तीस का आंकडा है। वह बिलाव के काले-सफ़ेद रंग, उसकी पीली-चौकन्नी आंखों, मूछों, खड़े कानों, लंबे पैरों, ऊंचे कद पर मोहित हो गई। उसे महसूस हुआ कि यह है असली मर्द। एक मेरा चूहा है। बिल्कुल बेकार। दो कौड़ी का।
वह बिलाव के प्रेम में दीवानी हो गई और निकल गई साजन से मिलने।
लेकिन बेचारे बिलाव को चुहिया का हाले दिल क्या मालूम? उसे तो पता था कि वह बिलाव है और यह चुहिया है। उसका शिकार करना ही उसका धर्म है।
बिलाव अपना धर्म निबाहने के लिए लपका। उधर चुहिया कहती रही- ``बिलाव, माई लव। ``
Saturday, March 15, 2008
Thursday, January 17, 2008
pakadamapatee
वह आपकी मृत्यु तक आपका पीछा नहीं छोड़ता और यह तो मरनेवाला ही बता सकता है कि -जो कि वह नहीं बताता -कि उसके बाद भी वह पीछा छोड़ता है या नहीं लेकिन तत्वदर्शी बताते हैं कि पैसा इतना क्रूर होता है कि वह मरे हुए को भी नहीं छोड़ता।
मरा हुआ भी उसके डर से अनंतकाल तक भागता रहता है।वह इतना डर जाता है कि दुबारा मरना चाहता है लेकिन एक बार मरने के बाद दुबारा मृत्यु कहाँ ?दौड़ते- दौड़ते यह हालत हो जाती है कि मरने वाले को यह याद भी नहीं रहता कि वह क्यों और किस के डर से भाग रहा है मगर वह भागता चला जाता है जाने किन-किन नक्षत्रों को पार करते हुए ,बिना उनको देखे,बिना उनको जाने। वह सांस तक नहीं ले पाता,पसीना तक पोंछ नहीं पाता। इस तरह होते-होते एक दिन वह उल्कापिंड की तरह पृथ्वी पर गिर पङता है और तब जाकर उसे मुक्ति मिलती है क्योंकि पैसे की पकड़ से मुक्ति की भी पूरे ब्रह्मांड में एक ही जगह है- पृथ्वी।