Saturday, June 28, 2008

पागल

पत्नी कहती है पति से
तुम पागल तो नहीं हो?
इसके जवाब में पति मुस्कुराता है
यहाँ तक कि पत्नी को बाहों में लेकर
चूमने लगता है

बाकी उनके बीच क्या होता है या क्या
नहीं होता हमें नहीं मालूम
पति कहता है फ़िर से प्लीज़ मुझे पागल कहो न
इस बार पत्नी सिर्फ़ मुस्कुराती है

ऐसे पति इतने पागल होते हैं
कि पत्नी बहुत दिनों तक उन्हें
पागल न कहे तो घबरा जाते हैं
और ऐसे हालत पैदा करते हैं कि
पत्नी को उन्हें पागल कहना ही पड़ता है
मेरे ख्याल से आप दोनों उन्हीं में से हैं।


Saturday, June 21, 2008

एवरेस्ट

उन्होंने कहा
इनका क्या कहना
इनको तो जी हम अपना
एवरेस्ट मानते हैं

इतना कहकर
मैं संभलता
इससे पहले
उन्होंने मुझमें
अपने झंडे गाढ दिए
और चूंकि उनके पास
कैमरे थे
तो मैंने अपनी छटा
दिखाने में भी विलंब नहीं किया ।
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Friday, June 6, 2008

जहाँ हरा होगा

जहाँ हरा होगा

वहां पीला भी होगा

गुलाबी भी होगा

वहां गंध भी होगी

उसे दूर-दूर ले जाती हवा भी होगी

और आदमी भी वहां से दूर नहीं होगा।

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Tuesday, June 3, 2008

ज़रूरत

उन्होंने ऐसा कृत्रिम दूध बनाया, जो असली दूध को मात करे। उसे पीकर लोगों को लगा कि अब गाय -भैंस-बकरी सबकी ज़रूरत नहीं रही।फ़िर उन्होंने ऐसा मांस बनाया कि लोगों को किसी भी तरह के जानवरों की ज़रूरत नहीं रही। फ़िर उन्होंने ऐसे रोबोट बनाये, जिनमें मनुष्य का एक भी दुर्गुण नहीं था और गुण सारे थे।तो मनुष्यों की ज़रूरत नहीं रही। मनुष्यों की ज़रूरत नहीं रही तो प्रकृति की ज़रूरत भी नहीं रही।पानी,पक्षी,सूरज,चाँद,तारे,कविता किसी की ज़रूरत नहीं रही।घृणा और प्रेम की ज़रूरत नहीं रही।पृथ्वी तक की ज़रूरत नहीं रही।सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में घूमनेवाले रोबोट में पता नहीं फ़िर कहाँ से क्या गडबडी आयी कि फ़िर ब्रह्माण्ड की भी ज़रूरत नहीं रही।

Thursday, May 1, 2008

क्या कव्वा भी चहचहा रहा था

उसने कहा -
आज क्या सुबह थी
क्या हवा थी
कितनी मस्ती से पक्षी चहचहा रहे थे
मैंने कहा रुको
क्या तुम्हारा मतलब ये है
कि कव्वे भी चहचहा रहे थे?

घोडों का गुनगुनाना
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उसने कहा
घोडे उस समय हिनहिना रहे थे
मैंने पूछा
तुम्हारा मतलब ये तो नहीं कि घोडे उस समय
गुनगुना नहीं रहे थे?

आकाश में रंग
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आकाश में इतने रंग थे उस दिन
कि उनका अर्थ समझना मुश्किल था
कि अपने को व्यर्थ समझना मुश्किल था।




Tuesday, April 29, 2008

पत्थरों का भी दिल होता है

कौन कहता है
पत्थरों का दिल नहीं होता ?
होता है
हमने तो ऐसे दिल भी देखे हैं
जिनकी हार्ट सर्जरी तक हो चुकी है।

धुप और छाँव
हमने सोचा कि हमारा घर धुप में होना चाहिए
फ़िर सोचा छाँव में होना चाहिए

फ़िर मुस्कराकर हमने अपने आप से कहा
पहले घर तो हो
धुप होगी तो छाँव भी चली आयेगी।

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Friday, April 11, 2008

shor

मेरे भीतर इतना शोर है
कि मुझे अपना बाहर बोलना
तक अपराध लगता है
जबकि बाहर ऐसी स्थिति है
कि चुप रहे तो गए।

Friday, April 4, 2008

गलतियाँ

गलतियाँ करना कभी बंद नहीं होता
और उन्हें ठीक करना भी
नई के साथ पुरानी गलतियाँ भी हम करते हैं
और हर गलती न ठीक हो सकती है
और न हम ठीक कर पाते हैं, न करना चाहते हैं
कुछ गलतियाँ करके हम पछताते हैं
और कुछ गलतियाँ हम जान बूझकर करते हैं
जैसे कि किसी यह कह देना कि यार मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
कुछ गलतियों के बारे में हमें कभी पता नहीं चलता
कई बार तो बताने पर भी हम यह जान नहीं पाते

बहरहाल मैं कसम खाता हूँ कि जब तक जिंदा हूँ गलतियाँ करता रहूँगा
अगर मैं अपनी किसी भी गलती के लिए माफी न मांगूं
तो समझना कि मैं हूँ नहीं।

Monday, March 24, 2008

ईश्वर और चुनाव

ईश्वर ने तीन बन्दर देखे। उन्होंने देखा कि एक बन्दर देखता और सुनता तो है मगर बोलता बिल्कुल नहीं है।
दूसरा बन्दर देखता और बोलता है मगर सुनता बिल्कुल नहीं है।
तीसरा बन्दर बोलता और सुनता है मगर देखता बिल्कुल नहीं है।
ऐसे बंदरों को देखकर आश्चर्यों के भी आश्चर्य ईश्वर को आश्चर्य हुआ और उन्होंने इन बंदरों के बारे में जिज्ञासा प्रकट की।
उन्हें मालूम हुआ कि ये गांधीजी के बन्दर हैं। दुनिया से कूच करने से पहले गांधीजी इनसे कह गए थे कि तुम्हें भविष्य में सुखी रहना है तो ऐसे ही रहना। इस बात का महत्व तुम आज नहीं समझोगे मगर जैसे-जैसे इस देश में चुनाव होते जाएंगे और लोकतंत्र `मजबूत` होता जाएगा, वैसे-वैसे तुम्हारे सामने मेरे कथनों की सच्चाई भी प्रकट होती जाएगी।
और एक दिन ऐसा आएगा कि तुम्हीं भारत के मनुष्य के आदर्श माने जाओगे। फिर एक दिन ऐसा भी आएगा कि मनुष्य फिर से बन्दर बनना चाहेगा।

Tuesday, March 18, 2008

चुहिया और बिलाव की प्रेमकथा

एक चुहिया अपने बिल से बाहर निकलने ही वाली थी कि उसकी नज़र बिलाव पर पड़ी, जो कि बाहर ही खड़ा था। चुहिया ने खुदा का शुक्र माना कि उसकी जान बच गयी।
वह बिल में खड़ी-खड़ी बिलाव के जाने का इन्तजार करने लगी। बिलाव मगर जमा हुआ था।टस से मस नहीं हो रहा था।
चुहिया एकटक बिलाव को देखे जा रही थीकि यह मरा कब जाए और वह कब बाहर निकले। धीरे-धीरे वह भूल गई कि यह बिलाव है और वह स्वयं चुहिया है और दोनों में छत्तीस का आंकडा है। वह बिलाव के काले-सफ़ेद रंग, उसकी पीली-चौकन्नी आंखों, मूछों, खड़े कानों, लंबे पैरों, ऊंचे कद पर मोहित हो गई। उसे महसूस हुआ कि यह है असली मर्द। एक मेरा चूहा है। बिल्कुल बेकार। दो कौड़ी का।
वह बिलाव के प्रेम में दीवानी हो गई और निकल गई साजन से मिलने।
लेकिन बेचारे बिलाव को चुहिया का हाले दिल क्या मालूम? उसे तो पता था कि वह बिलाव है और यह चुहिया है। उसका शिकार करना ही उसका धर्म है।
बिलाव अपना धर्म निबाहने के लिए लपका। उधर चुहिया कहती रही- ``बिलाव, माई लव। ``

Saturday, March 15, 2008

दुःख

जब मैं अपने दुखों की बात कर रहा था
उन्होंने कहा- करो और करते जाओ
ये हमारे दुःख भी हैं
मैंने अपने सुखों के बारे में कहा तो
उन्होंने नहीं कहा, ये हमारे भी हैं।

घर-बाहर

मेरा घर
मेरे घर के बाहर भी है
मेरा बाहर
मेरे घर के अन्दर भी

घर को घर में
बाहर को बाहर ढूंढकर
मैंने पाया
मैं दोनों जगह नहीं हूँ

Thursday, January 17, 2008

pakadamapatee

jab आप पैसे के पीछे भागते हैं और भागते चले जाते हैं तो एक दिन ऐसा आता है कि पैसा खुद आपके पीछे भागना शुरू कर देता है और तब आप इसलिए भाग रहे होते हैं कि पैसा आपके पीछे आपको पकड़ने की कोई जल्दी नहीं होती , वह तो बस इतना चाहता है कि आप लगातार भागते रहें और आप इस भ्रम में बने रहें कि वह आपको पकड़ना चाहता है और आप हैं कि उसकी पकड़ में नहीं आ रहे हैं । वह अपनी उदारता दिखाने के लिए यह तक करता है कि जब आप दौड़ते-दौड़ते गिर जाते हैं तो वह आपको उठाने का मौका देता है ताकि आप फिर से भाग सकें और वह आपको पकड़ने के लिए आपके पीछे भाग सके ।
वह आपकी मृत्यु तक आपका पीछा नहीं छोड़ता और यह तो मरनेवाला ही बता सकता है कि -जो कि वह नहीं बताता -कि उसके बाद भी वह पीछा छोड़ता है या नहीं लेकिन तत्वदर्शी बताते हैं कि पैसा इतना क्रूर होता है कि वह मरे हुए को भी नहीं छोड़ता।
मरा हुआ भी उसके डर से अनंतकाल तक भागता रहता है।वह इतना डर जाता है कि दुबारा मरना चाहता है लेकिन एक बार मरने के बाद दुबारा मृत्यु कहाँ ?दौड़ते- दौड़ते यह हालत हो जाती है कि मरने वाले को यह याद भी नहीं रहता कि वह क्यों और किस के डर से भाग रहा है मगर वह भागता चला जाता है जाने किन-किन नक्षत्रों को पार करते हुए ,बिना उनको देखे,बिना उनको जाने। वह सांस तक नहीं ले पाता,पसीना तक पोंछ नहीं पाता। इस तरह होते-होते एक दिन वह उल्कापिंड की तरह पृथ्वी पर गिर पङता है और तब जाकर उसे मुक्ति मिलती है क्योंकि पैसे की पकड़ से मुक्ति की भी पूरे ब्रह्मांड में एक ही जगह है- पृथ्वी।