Tuesday, September 18, 2007
कित्ते खाऊ हैं
वे गरीबों में भी सबसे गरीबों का पिछले तीन सालों में ३१६०० करोड़ रुपये का अनाज खा गए.बहुत खाऊ हैं ना। क्या भेंजी कोई इत्ता खा सके है पर भगवान सौं वे इत्ता खा गए और डकार भी नी ली उन्होंने. इसका मतबल है कि गरीब का अनाज बहुत पौष्टिक होता हैगा.भेंजी मैं तो डर ही गयी। मैं सोची कि अब तो इनको टट्टी ज़रूर लगेगी , नहीं तो उल्टी तो ज़रूर होगी , नहीं तो खट्टी डकार तो ज़रूर से ज़रूर आयेगी और नहीं तो पेचिश होना तो पक्का है , कुछ ना कुछ तो होयेगा ही पर क्या बताऊँ उनको कुछ ना हुआ । ऐसों पर तो भगवान् भी बहोत दयालू रहता हेगा .और भेंजी मैं क्या देखी सब एक लाईन से बैठकर खा रहे थे , ना कोई किसी से जात पूछ रहा था , ना धरम,ना पार्टी , ना विचारधारा .कांग्रेसी और भाजपाई तो मरे जहाँ मिले जो मिले खा लेते हैं.इनको तो खाने की इत्ती आदत पड़ चुकी है कि लक्कड़ भी हजम पत्थर भी हजम .इनको तो मिलना चाहिए कुछ खाने को फिर तो ये लाज-शरम छोड़ कर खाने लगते हैं पर भेंजी मैं जब ये देखी कि गरीब का गेहूँ और चावल खाने के लिए सर्वदलीय सम्मेलन की तरह सर्वदलीय पंगत लगी है , समाजवादी भी खा रहे हैं , और कम्युनिस्ट भी, लालूजी की पार्टी के लोग भी खा रहे हैं तो राष्ट्रीय लोकदल के भी तो मेरी तो आँखें फटी कि फटी रह गयी । यूपीवाले खा रहे थे तो बंगालवाले भी, नॉर्थईस्टवाले भी,मध्यप्रदेशवाले भी ।ऎसी राष्ट्रीय एकता तो मैंने पहले कभी नहीं देखी.इससे तो लगता है भेंजी ये गरीब का कितना ख़्याल रखते हैं , बेचारे को दाल-रोटी -चावल खाने की तकलीफ देना भी नहीं चाहते । लोग कहते हैं वैश्वीकरण आ गया, वैश्वीकरण आ गया , अब गरीबों को कौन पूछता है पर ऎसी बात नहीं हैं कित्ता पूछते हैं गरीब को उसे तो मुँह से खाने की तकलीफ भी देना नहीं चाहते और खुद जल्दी -जल्दी खा जाते हैं और जितना मिले, जहाँ से मिले और गरीब का अनाज तो भेंजी छोड़ते ही नहीं.बहूत दयालू हैं ना ? भेंजी मेरे को तो अब पक्का विश्वास हो गया है कि गरीबी तो बहुत हट चुकी अब तो गरीब ही हटेगा पर भेंजी ये गरीब के गेहूँ चावल पर पेट पालनेवालों का क्या होगा?
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9 comments:
बिल्कुल सही भेंजी! आपकी बात में दम है. क्योंकि इसमें अपराध कम है.
भैंजी, में जानना चाहूं कि वो कौन सा हाज्मोला खा या पी गये कि सब कुछ हज़म भी हो गया, और अडोस पडोस को खबर भी ना हुई.
कही इनके पेट से कोई गुप्त नहर / नद्दी तो नही निकल रयी , कि मुआ इधर खाये उधर निकारे .
इब तो जांच खुद करनी पडेगी.
भारतीयम्
बहुत आनन्द दायक है विष्णु जी। अच्छा भी लग रहा है।
बढ़िया है। विष्णुजी आपका ब्लाग देखकर मन खुश हो गया। अब नियमित ब्लाग लिखा करिये।
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है विष्णु नागर जी। बहुत खुशी की बात है कि आप हमारे बीच शामिल हो गए हैं। उम्मीद है अब लेखन निरन्तर जारी रहेगा।
देर से आ रहे हैं हम आपके ब्लॉग पर , देर आए दुरुरस्त आए वाले अंदाज़ में पहले किताबों मे आपका लिखा पढ़ा किए अब यहां पढ़ा करेंगे!
सबसे पहले तो शुक्रिया कबूल फ़रमाएं कि आपने ब्लॉग बनाने का निर्णय लिया इससे हम जैसे आम पाठक सीधे जुड़ सकेंगे अगर हमारे पास इंटरनेट की सुविधा हो तो!!
स्वागत है आपका हिन्दी ब्लॉगजगत में!
भाई साहब आपको यहां देखकर अच्छा लगा आशा है यहां पर आपसे नियमित भेंट हो सकेगी मेरा ब्लाग subeerin.blogspot है कभी हो सके तो दखियेगा आपका ही पंकज सुबीर
नागर जी अभी अभी आपका ब्लॉग देखा..बड़ा अच्छा लगा.. अब आपका लेखन ब्लाग के माध्यम से भी हम लोग तक पहुंचेगा ..
आशीष
http://bolhalla.blogspot.com
विष्णुजी , चिट्ठालोक में आपको पाकर दिल खुश हुआ। सतत रहिएगा,यहाँ भी।
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