उसने कहा -
आज क्या सुबह थी
क्या हवा थी
कितनी मस्ती से पक्षी चहचहा रहे थे
मैंने कहा रुको
क्या तुम्हारा मतलब ये है
कि कव्वे भी चहचहा रहे थे?
घोडों का गुनगुनाना
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उसने कहा
घोडे उस समय हिनहिना रहे थे
मैंने पूछा
तुम्हारा मतलब ये तो नहीं कि घोडे उस समय
गुनगुना नहीं रहे थे?
आकाश में रंग
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आकाश में इतने रंग थे उस दिन
कि उनका अर्थ समझना मुश्किल था
कि अपने को व्यर्थ समझना मुश्किल था।
Thursday, May 1, 2008
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5 comments:
वाह्ह-वाह्ह नागर जी
आकाश में इतने रंग थे उस दिन/कि उनका अर्थ समझना मुश्किल था/कि अपने को व्यर्थ समझना मुश्किल था।
कविता उम्मीद जगाती है, अच्छी लगी.
इसे कहते हैं गागर में सागर
और कविता में नागर
apki kavitaye brilliant h, itna minute observed satire, day to day ki careless assetion pe sidhi chot ki h, achha laga
कव्वे चहचहा रहे थे? क्या शानदार सवाल किया है आपने।
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