ईश्वर ने तीन बन्दर देखे। उन्होंने देखा कि एक बन्दर देखता और सुनता तो है मगर बोलता बिल्कुल नहीं है।
दूसरा बन्दर देखता और बोलता है मगर सुनता बिल्कुल नहीं है।
तीसरा बन्दर बोलता और सुनता है मगर देखता बिल्कुल नहीं है।
ऐसे बंदरों को देखकर आश्चर्यों के भी आश्चर्य ईश्वर को आश्चर्य हुआ और उन्होंने इन बंदरों के बारे में जिज्ञासा प्रकट की।
उन्हें मालूम हुआ कि ये गांधीजी के बन्दर हैं। दुनिया से कूच करने से पहले गांधीजी इनसे कह गए थे कि तुम्हें भविष्य में सुखी रहना है तो ऐसे ही रहना। इस बात का महत्व तुम आज नहीं समझोगे मगर जैसे-जैसे इस देश में चुनाव होते जाएंगे और लोकतंत्र `मजबूत` होता जाएगा, वैसे-वैसे तुम्हारे सामने मेरे कथनों की सच्चाई भी प्रकट होती जाएगी।
और एक दिन ऐसा आएगा कि तुम्हीं भारत के मनुष्य के आदर्श माने जाओगे। फिर एक दिन ऐसा भी आएगा कि मनुष्य फिर से बन्दर बनना चाहेगा।
Monday, March 24, 2008
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4 comments:
बहुत बढिया नागर जी. लाजबाव व्यंग्य
प्रजातंत्र में प्रजा की नियति का
नेक-नीयत बयान है यह प्रस्तुति.
behtareen!
In teen bandaron ka yeh naya paksh jo aapne ujaagar kiya hai kaabil-e-tareef hai.
Sachmuch, aaj in teenon ki yahi paribhasha sahi lag rahi hai.
बन्दर से आदमी और आदमी से बन्दर। अजीब और अलग अन्दाज।
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