Wednesday, December 12, 2007

शुक्लाजी की समस्या

शुक्लाजी की समस्या
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शुक्ला ऐसा बहुत कुछ करता है
जिससे शुक्ला न लगकर तिवारी लगे
एतलिस्ट गुप्ता तो लगे ही
लेकिन इस चक्कर में वह ऐसा बहुत कुछ कर जाता है
जिससे वह वर्मा लगने लगता है
जिसे वह बिल्कुल पसंद नहीं करता
जो बनने कि वह सपने में भी नहीं सोचता
त्रासदी यह है कि वह संभले तब तक
लोग उसे वर्मा कहना शुरू कर देते हैं
वह कितना ही कहे वह वर्मा नहीं , शुक्ला है
कोई सुनता नहीं
शुक्ला इससे परेशान है
तिवारीजी और गुप्ताजी को इससे ख़ुशी बेहिसाब है।
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Tuesday, December 4, 2007

कविता

जीना
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कबूतर-कबूतरी के पास नौकरी नहीं है
वे दिहाड़ी मजदूर भी नहीं हैं
लेकिन उन्हें खुद भी खाना है
बच्चों को भी खिलाना है-
जो सुबह पांच बजे ही मांगने लगते है
लाओ,और लाओ, लाते क्यों नहीं , कब लाओगे?
नहीं मिले तो किसी से शिक़ायत भी नहीं करना है-
न ईश्वर से ,न आदमी से ,न व्यवस्था से
न क्रोध प्रकट करना है,न निराश होना है
न आत्महत्या करना है
न शराब पी-पी कर गम भुलाना है
खुद डरना है मगर दूसरों को डराना नहीं है
लेकिन खुद खाना है और बच्चों को खिलाना है
खुद जीना है और बच्चों को जिलाये रखना है
मौत से खुद बचना है , बच्चों को बचाना है

किसी से कोई प्रार्थना नहीं करना है
उम्मीद नहीं रखना है
किसी छप्पर के फटने का इंतज़ार नहीं करना है

जीना है
और जीना है
और जीते चले जाना है
इसी तरह , सिर्फ इसी तरह , केवल इसी तरह ।

Tuesday, October 23, 2007

कवितायेँ

सवाल-जवाब
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सवाल मत करो बेवकूफ
जवाब दो
सवाल करने का हक हमें है
और हम चाहें तो तुम्हारी ओर से जवाब भी दे सकते हैं
लेकिन हम तुम्हें जवाब देने दे रहे हैं
तो जवाब देने के हक का इस्तेमाल करो
और तुम्हें मालूम है न
जवाब क्या देना है
या यह भी हमें ठीक से बताना पड़ेगा तुम्हें ।


बिल्ली,चूहे और हज
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वह बिल्ली है
वह नौ सौ चूहे ज़रूर खायेगी
और फिर हज को भी जायेगी
और हज को जायेगी
तो हाजी कहलाने से
अपने को कैसे रोक पायेगी
और हाजी हो कर भी
खुद को चूहे खाने से कैसे रोक पायेगी
और मौका मिलेगा तो हज फिर से क्यों नहीं जायेगी ?
इसका मतलब है
कि चूहों की हालत में
इससे कोई तब्दीली नहीं आयेगी
चूहों की उम्मीद पर
बिल्ली कभी खरी नहीं उतर पायेगी
यानी बिल्ली कभी शाकाहारी नहीं बन पायेगी
यानी वह चूहों की हालत पर कभी तरस नहीं खायेगी
चूहे कितना भी चाहें
बिल्ली उनको समझने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायेगी

वह तो नौ सौ चूहे भी खायेगी और हज पर भी जायेगी।

Monday, October 22, 2007

बुश एक दिन राष्ट्रपति नहीं रहा।
उसने अपने सहायक से पूछा -भइये ये बता अब ये दुनिया कैसे चलेगी?
सहायक अभी भी उसका वफादार बना हुआ था।उसने जवाब दिया - भगवान भरोसे चलेगी और कैसे चलेगी?
बुश ने जवाब दिया-यही तो मुश्किल है। भगवान तो खुद मेरे भरोसे चल रहा है।
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जैसे गाय का दूध बछ्डों को कम आदमी को ज्यादा मिलता है , उसी तरह बुश के वचनों से अमेरिकी कम दुनियाभर के लोग ज़्यादा लाभान्वित हो रहे थे।
बुश के सहायक ने कहा कि सर दुनिया आपके वचनों की मुफ्तखोरी कर रही है।आपको अपने अमूल्य वचनों की रायल्टी मिलनी चाहिए ।
यह सुनकर बुश अचानक दार्शनिक बन गया। उसने कहा- छोडो यार हमने अभी आक्सीजन पर भी तो टैक्स नहीं लगाया। जब ऑक्सीजन पर टेक्स लगायेंगे तो मेरे वचनों पर भी रायल्टी लेने लगेंगे।
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बुश एक दिन खूब खुश था।
सब सहायक एकदूसरे से पूछ रहे थे कि साहब आज इतने ज़्यादा खुश क्यों हैं लेकिन कोई खुद बुश के पास जाकर पूछ नहीं रहा था। वजह यह नहीं थी कि लोग बुश से डरते थे , कारण यह था कि इसके जवाब में बुश यह कह सकता था कि मैं यह सोच-सोचकर खुश हूँ कि मैं यह तो अच्छा हुआ कि मैं इराक में फंस गया वरना क्या पता मैं भी किसी लौंडिया से फंसकर बदनाम हो जाता।

Wednesday, October 10, 2007

गिद्ध

गिद्ध
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शहीद का शव अभी -अभी घर लाया गया था ।
शव आया कि गिद्ध आये , नेता -मंत्री आये।हर गिद्ध शव पर चढाने के लिए अपने साथ पुष्प -गुच्छ लाया। पुष्पगुच्छ उठाने के लिए साथ में एक नौकर भी लाया।आंखों में आंसू जैसा कुछ लाया। चेहरे पर उदासी ओढ़ लाया।
गिद्ध ही गिद्ध थे चारों और। इतने गिद्धों को देख कर शहीद की विधवा और बच्चे डर
गए। वे रोना भूलकर घर की अंधेरी कोठरी में छुप गए।
न पुष्प गुच्छ ख़त्म हो रहे थे , न नेता,नहीं - नहीं गिद्ध।
इतने गिद्धों और इतने पुष्प गुच्छों से शहीद भी घबरा गया।वह मर चुका था , फिर भी उसका दम घुट रहा था। वह मरे -मरे ही चिल्लाया -बस करो गिद्धों , बहुत हो चुका , अगर तुम इसी तरह करोगे तो मेरे जैसे लोग देश के लिए शहीद होना बंद कर देंगे।
इतना कहकर वह चुप हो गया।मरा हुआ आदमी इससे ज़्यादा क्या बोलता।
मगर गिद्ध नहीं माने। उनके चेहरों पर उसी तरह की प्रोफेशल उदासी और आंसू थे और उसी तरह उनके कपडे सफ़ेद थे। एक गिद्ध ने धीरे से कहा - अब हम इतना समय बरबाद कर के आये हैं तो चाहे जो हो जाये , पुष्प गुच्छ चढ़ाकर और सिर नवाकर ही जायेंगे। हमारी भी मजबूरी है , जनता क्या सोचेगी हमारे बारे में? जिसको भविष्य में शहीद होना हो , हो , न होना हो , न हो, अपनी बला से।
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Saturday, October 6, 2007

लघुकथायें

ईश्वर की लाचारी

सपने में वह सब कुछ हासिल कर लेता है ।वह लंदन,न्यूयॉर्क , पेरिस चला जाता है,वहां सबसे फर्राटेदार अंगरेजी में बातें कर्ता है , सूट-टाई पहनता है ,नाईट क्लबों में जाता है , लाईव शो देखता है,गोरी औरत के साथ रात बिताता है लेकिन सपने में भी एक बात नहीं हो पाती है। वह सपने में अपने को अंग्रेज जैसा गोरा देखना चाहता है और लाख कोशिशों के बाद वह नहीं हो पाता है ।
उसने क़सम खाई है कि कम से कम वह सपने में तो अपने को गोरा देखकर ही रहेगा। इसके लिए वह दान -पुण्य,हवन -जाप सब कुछ कर रहा है । उसे विश्वास है कि ईश्वर एक न एक दिन उसकी मदद ज़रूर करेगा।
ईश्वर बेचारा उसे कैसे बताये कि वह भी उसकी मदद नहीं कर सकता।
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चिम्पाजी
मैंने कहीं पढा कि एक चिम्पाजी , दूसरे चिम्पाजी से मिलने पर हाथ मिलाता है।
चलो मेरी यह शर्म दूर हुयी। आज तक मैं यही समझता था कि हम हिंदुस्तानी , अंग्रेजों की नक़ल में एक -दूसरे से हाथ मिलाया करते हैं। अब पता चला कि हम तो अपने पूर्वजों के बनाए रास्ते पर ही चल रहे हैं ।

Thursday, September 27, 2007

राम भजन करो भाई कि चुनाव की बेला आई

भाजपा जब भजन करने लगे तो आजकल गधे भी समझ जाते हैं कि चुनाव आ रहे
हैं।और गधों को भी समझ में आ चुका है कि भाजपाई भजन का राज़ क्या है। आजकल भाजपा को रामसेतु को बचाने कि बहुत चिंता होने लगी है।राम रक्षा के लिए वे फिर मैदान में हैं , जैसे रामजी को खुद तो अपनी रक्षा करना आता नहीं ,सैकड़ों सालों से बेचारे इन्हीं के भरोसे तो ज़िंदा हैं अपने करोड़ों भक्तों के मन में । इन्हीं ने तो बाल्मिकी और तुलसीदास से रामजी की सिफारिश की थी कि इन पर ग्रंथ लिख दो । इनके कहने पर तो इन सज्जनों ने रामकथा लिखी थी । इनके भरोसे तो ये महाकवि भी बने हुये हैं वरना कौन पूछता बेचारों को। रामजी भी आज तक अमर हैं इन्हीं के भरोसे। करो भाई राम की रक्षा करो। उनका राम जन्मभूमि मंदिर तो तुम बना ही चुके हो अयोध्या में , अब उनका सेतु भी बचा लो , बड़ी किरपा होगी रामजी पर । आप तो पैदा ही हुये हो रामजी पर कृपा करने के वास्ते , उन पर कापी राइट है आपका । भगवान आपका भला करे। आपको सत्ता सुख अवश्य मिले। जैश्री राम ।

Wednesday, September 26, 2007

फालतू चीज़

फालतू चीज़
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घर में कोई चीज़
फालतू नहीं थी
टूटा कंघा लगता था
अमर है
भरोसा था अब खोएगा भी नहीं

घड़ी बंद थी
पुरानी थी
उस दिन से बंद थी
जिस दिन गांधीजी मरे थे
मालूम था नहीं चलेगी
मगर तब की थी
जब पिताजी विद्यार्थी थे
आंखों के सामने बार-बार आ जाती थी

और एक तलवार थी
बहुत भारी
जंग लगी
पता नहीं किस पुरखे की थी
किससे लड़ने के काम आयी थी
बेचते डर लगता था
जीवन में लौट आयेगी

सारे घर में
एक ही चीज़ फालतू थी --
दरवाजा
सबको समान रूप से रोकता था
उसे मैंने सुबह से खुला छोड़ दिया है।
(बच्चे, पिता और माँ कविता - संग्रह से )
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Tuesday, September 18, 2007

कित्ते खाऊ हैं

वे गरीबों में भी सबसे गरीबों का पिछले तीन सालों में ३१६०० करोड़ रुपये का अनाज खा गए.बहुत खाऊ हैं ना। क्या भेंजी कोई इत्ता खा सके है पर भगवान सौं वे इत्ता खा गए और डकार भी नी ली उन्होंने. इसका मतबल है कि गरीब का अनाज बहुत पौष्टिक होता हैगा.भेंजी मैं तो डर ही गयी। मैं सोची कि अब तो इनको टट्टी ज़रूर लगेगी , नहीं तो उल्टी तो ज़रूर होगी , नहीं तो खट्टी डकार तो ज़रूर से ज़रूर आयेगी और नहीं तो पेचिश होना तो पक्का है , कुछ ना कुछ तो होयेगा ही पर क्या बताऊँ उनको कुछ ना हुआ । ऐसों पर तो भगवान् भी बहोत दयालू रहता हेगा .और भेंजी मैं क्या देखी सब एक लाईन से बैठकर खा रहे थे , ना कोई किसी से जात पूछ रहा था , ना धरम,ना पार्टी , ना विचारधारा .कांग्रेसी और भाजपाई तो मरे जहाँ मिले जो मिले खा लेते हैं.इनको तो खाने की इत्ती आदत पड़ चुकी है कि लक्कड़ भी हजम पत्थर भी हजम .इनको तो मिलना चाहिए कुछ खाने को फिर तो ये लाज-शरम छोड़ कर खाने लगते हैं पर भेंजी मैं जब ये देखी कि गरीब का गेहूँ और चावल खाने के लिए सर्वदलीय सम्मेलन की तरह सर्वदलीय पंगत लगी है , समाजवादी भी खा रहे हैं , और कम्युनिस्ट भी, लालूजी की पार्टी के लोग भी खा रहे हैं तो राष्ट्रीय लोकदल के भी तो मेरी तो आँखें फटी कि फटी रह गयी । यूपीवाले खा रहे थे तो बंगालवाले भी, नॉर्थईस्टवाले भी,मध्यप्रदेशवाले भी ।ऎसी राष्ट्रीय एकता तो मैंने पहले कभी नहीं देखी.इससे तो लगता है भेंजी ये गरीब का कितना ख़्याल रखते हैं , बेचारे को दाल-रोटी -चावल खाने की तकलीफ देना भी नहीं चाहते । लोग कहते हैं वैश्वीकरण आ गया, वैश्वीकरण आ गया , अब गरीबों को कौन पूछता है पर ऎसी बात नहीं हैं कित्ता पूछते हैं गरीब को उसे तो मुँह से खाने की तकलीफ भी देना नहीं चाहते और खुद जल्दी -जल्दी खा जाते हैं और जितना मिले, जहाँ से मिले और गरीब का अनाज तो भेंजी छोड़ते ही नहीं.बहूत दयालू हैं ना ? भेंजी मेरे को तो अब पक्का विश्वास हो गया है कि गरीबी तो बहुत हट चुकी अब तो गरीब ही हटेगा पर भेंजी ये गरीब के गेहूँ चावल पर पेट पालनेवालों का क्या होगा?

Monday, September 17, 2007

ईश्वर की कहानियाँ -4

ईश्वर कल्पना करते थे कि धरती पर बच्चों के हाथों में बांसुरियां होंगी लेकिन जब उन्होंने देखा कि बच्चों के हाथों में पिस्तोलें हैं और ये उन्हें अमिताभ बच्चन ने थमाई हैं तो उनके विचार बदले कि इतनी सदियाँ बीत चुकीं हैं इस बीच आदमी ने स्वाभाविक है कुछ प्रगति भी की है।
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ईश्वर ईश्वर होकर भी उस दिन भूखे थे ।
दोपहर का वक्त था । दो आदमी बातें कर रहे थे ,'आदमी को बस आदमी का प्यार
चाहिए ।'
'और अगर दोपहर का एक बज चुका हो तो खाना भी चाहिए,'ईश्वर ने कहा लेकिन लोगों ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया।
(कृपया १३ सितंबर और इससे पहले की पोस्ट भी देखें.)

Thursday, September 13, 2007

कविताएं-3

व्यंग्य
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मैंने उन पर व्यंग्य लिखा
वही उनका सबसे अच्छा विज्ञापन निकला
वही मेरी सबसे कमाऊ रचना निकली
वही हिंदी साहित्य के इतिहास में समादृत भी हुई।

अपने बारे में सोचना
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अपने बारे में सोचना
उन्हें हमेशा दुनिया के बारे में सोचने जैसा लगता था

और इस तरह दुनिया के बारे में सोचना
उन्हें हमेशा अच्छा लगता था.

ईश्वर की कहानियाँ -3

एक भक्त ने पूछा -'भगवन आप अपनी पूजा पृथ्वी पर कराते हैं और रहते स्वर्ग में हैं , ऐसा अंतर्विरोध क्यों ?'
' इसलिये की बच्चे , घर की मुर्गी दाल बराबर होती है।'
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ईश्वर से पूछा गया कि उन्हें कौनसा मौसम अच्छा लगता है -ठंड का या गर्मी का या बरसात का?
ईश्वर ने कहा-'मूर्ख मौसम का असर गरीबों पर पड़ता है,अमीरों और ईश्वर पर नहीं.'
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Wednesday, September 12, 2007

कविताएं-2

माँ जब जगाने आयी
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नींद और गहरी हुई
माँ जब जगाने आयी
पेड़ हरे-हरे हुए
पहाड़ गहरे-गहरे।


माँ के शव के पास रातभर जागने की स्मृति
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सबेर हुई जा रही है
माँ को उठाना है

प्राण होते तो माँ खुद उठतीं

माँ को उठाना है
nahlana hai
नए कपड़े पहनाने हैं
अंत तक ले जाना है
स्मृति को मिटाना है .

ईश्वर की कहानियाँ -2

ईश्वर ने जब सुना कि एक आदमी अपने को ईश्वर बताकर लोगों को लूट रह है तो उन्होंने मुँह अँधेरे सारे शहर में पोस्टर लगवा दिए, 'नकली ईश्वर से सावधान .धोखा मत
खाइए।'
अगले दिन जवाबी पोस्टर लगे थे -'असली ईश्वर से सावधान । उसी के कारण आज दुनिया की यह हालत हो चुकी है।'
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लहलहाती फसल को देखकर ईश्वर किसान से बोले,'बहुत पुण्यवान हो।'
'पुण्यवान और मैं ? पुण्यवान तो आपका वह सेठ है जिसका मैं कर्ज़दार हूँ और जिसके घर यह सारी फसल चली जायेगी.'

Tuesday, September 11, 2007

यह घर है

यह घर है
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यह घर है
इसमें एक बार कोई चीज़
खोयी तो मिली नहीं

मगर कुछ चीज़े कभी खोयी नहीं।
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चाक़ू
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चाकू खुद ह्त्या नहीं करता
और मदद तो वह
सब्जी काटने में भी करता है.

ईश्वर की कहानियाँ

मनुष्य के चोले में पृथ्वी पर आने से पहले ईश्वर को उन सबसे प्यार था , जो उनसे प्यार करते थे।

लेकिन पृथ्वी पर आने के बाद उन्होंने पाया कि वे ऐसे कई लोगों से नफ़रत करते हैं जो उनसे प्यार करते हैं और ऐसे कई लोगों से प्यार करते हैं जो उनसे नफ़रत करते हैं।



ईश्वर को पृथ्वी पर आये बहुत अरसा बीत चुका था .वह चलते-चलते प्रवचन सुनने रुक गए।

प्रवचनकर्ता ने कहा -ईश्वर अव्याखेय है ...

'हाँ बिल्कुल आदमी की तरह' ईश्वर बोल पड़े .
प्रवचनकर्ता ने उन्हें 'मूर्ख' कहा.ईश्वर ने बदले में उसे मूर्ख कहने कि बजाय वहां से चुपचाप चले जाना ठीक समझा.