Tuesday, October 23, 2007

कवितायेँ

सवाल-जवाब
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सवाल मत करो बेवकूफ
जवाब दो
सवाल करने का हक हमें है
और हम चाहें तो तुम्हारी ओर से जवाब भी दे सकते हैं
लेकिन हम तुम्हें जवाब देने दे रहे हैं
तो जवाब देने के हक का इस्तेमाल करो
और तुम्हें मालूम है न
जवाब क्या देना है
या यह भी हमें ठीक से बताना पड़ेगा तुम्हें ।


बिल्ली,चूहे और हज
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वह बिल्ली है
वह नौ सौ चूहे ज़रूर खायेगी
और फिर हज को भी जायेगी
और हज को जायेगी
तो हाजी कहलाने से
अपने को कैसे रोक पायेगी
और हाजी हो कर भी
खुद को चूहे खाने से कैसे रोक पायेगी
और मौका मिलेगा तो हज फिर से क्यों नहीं जायेगी ?
इसका मतलब है
कि चूहों की हालत में
इससे कोई तब्दीली नहीं आयेगी
चूहों की उम्मीद पर
बिल्ली कभी खरी नहीं उतर पायेगी
यानी बिल्ली कभी शाकाहारी नहीं बन पायेगी
यानी वह चूहों की हालत पर कभी तरस नहीं खायेगी
चूहे कितना भी चाहें
बिल्ली उनको समझने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायेगी

वह तो नौ सौ चूहे भी खायेगी और हज पर भी जायेगी।

Monday, October 22, 2007

बुश एक दिन राष्ट्रपति नहीं रहा।
उसने अपने सहायक से पूछा -भइये ये बता अब ये दुनिया कैसे चलेगी?
सहायक अभी भी उसका वफादार बना हुआ था।उसने जवाब दिया - भगवान भरोसे चलेगी और कैसे चलेगी?
बुश ने जवाब दिया-यही तो मुश्किल है। भगवान तो खुद मेरे भरोसे चल रहा है।
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जैसे गाय का दूध बछ्डों को कम आदमी को ज्यादा मिलता है , उसी तरह बुश के वचनों से अमेरिकी कम दुनियाभर के लोग ज़्यादा लाभान्वित हो रहे थे।
बुश के सहायक ने कहा कि सर दुनिया आपके वचनों की मुफ्तखोरी कर रही है।आपको अपने अमूल्य वचनों की रायल्टी मिलनी चाहिए ।
यह सुनकर बुश अचानक दार्शनिक बन गया। उसने कहा- छोडो यार हमने अभी आक्सीजन पर भी तो टैक्स नहीं लगाया। जब ऑक्सीजन पर टेक्स लगायेंगे तो मेरे वचनों पर भी रायल्टी लेने लगेंगे।
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बुश एक दिन खूब खुश था।
सब सहायक एकदूसरे से पूछ रहे थे कि साहब आज इतने ज़्यादा खुश क्यों हैं लेकिन कोई खुद बुश के पास जाकर पूछ नहीं रहा था। वजह यह नहीं थी कि लोग बुश से डरते थे , कारण यह था कि इसके जवाब में बुश यह कह सकता था कि मैं यह सोच-सोचकर खुश हूँ कि मैं यह तो अच्छा हुआ कि मैं इराक में फंस गया वरना क्या पता मैं भी किसी लौंडिया से फंसकर बदनाम हो जाता।

Wednesday, October 10, 2007

गिद्ध

गिद्ध
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शहीद का शव अभी -अभी घर लाया गया था ।
शव आया कि गिद्ध आये , नेता -मंत्री आये।हर गिद्ध शव पर चढाने के लिए अपने साथ पुष्प -गुच्छ लाया। पुष्पगुच्छ उठाने के लिए साथ में एक नौकर भी लाया।आंखों में आंसू जैसा कुछ लाया। चेहरे पर उदासी ओढ़ लाया।
गिद्ध ही गिद्ध थे चारों और। इतने गिद्धों को देख कर शहीद की विधवा और बच्चे डर
गए। वे रोना भूलकर घर की अंधेरी कोठरी में छुप गए।
न पुष्प गुच्छ ख़त्म हो रहे थे , न नेता,नहीं - नहीं गिद्ध।
इतने गिद्धों और इतने पुष्प गुच्छों से शहीद भी घबरा गया।वह मर चुका था , फिर भी उसका दम घुट रहा था। वह मरे -मरे ही चिल्लाया -बस करो गिद्धों , बहुत हो चुका , अगर तुम इसी तरह करोगे तो मेरे जैसे लोग देश के लिए शहीद होना बंद कर देंगे।
इतना कहकर वह चुप हो गया।मरा हुआ आदमी इससे ज़्यादा क्या बोलता।
मगर गिद्ध नहीं माने। उनके चेहरों पर उसी तरह की प्रोफेशल उदासी और आंसू थे और उसी तरह उनके कपडे सफ़ेद थे। एक गिद्ध ने धीरे से कहा - अब हम इतना समय बरबाद कर के आये हैं तो चाहे जो हो जाये , पुष्प गुच्छ चढ़ाकर और सिर नवाकर ही जायेंगे। हमारी भी मजबूरी है , जनता क्या सोचेगी हमारे बारे में? जिसको भविष्य में शहीद होना हो , हो , न होना हो , न हो, अपनी बला से।
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Saturday, October 6, 2007

लघुकथायें

ईश्वर की लाचारी

सपने में वह सब कुछ हासिल कर लेता है ।वह लंदन,न्यूयॉर्क , पेरिस चला जाता है,वहां सबसे फर्राटेदार अंगरेजी में बातें कर्ता है , सूट-टाई पहनता है ,नाईट क्लबों में जाता है , लाईव शो देखता है,गोरी औरत के साथ रात बिताता है लेकिन सपने में भी एक बात नहीं हो पाती है। वह सपने में अपने को अंग्रेज जैसा गोरा देखना चाहता है और लाख कोशिशों के बाद वह नहीं हो पाता है ।
उसने क़सम खाई है कि कम से कम वह सपने में तो अपने को गोरा देखकर ही रहेगा। इसके लिए वह दान -पुण्य,हवन -जाप सब कुछ कर रहा है । उसे विश्वास है कि ईश्वर एक न एक दिन उसकी मदद ज़रूर करेगा।
ईश्वर बेचारा उसे कैसे बताये कि वह भी उसकी मदद नहीं कर सकता।
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चिम्पाजी
मैंने कहीं पढा कि एक चिम्पाजी , दूसरे चिम्पाजी से मिलने पर हाथ मिलाता है।
चलो मेरी यह शर्म दूर हुयी। आज तक मैं यही समझता था कि हम हिंदुस्तानी , अंग्रेजों की नक़ल में एक -दूसरे से हाथ मिलाया करते हैं। अब पता चला कि हम तो अपने पूर्वजों के बनाए रास्ते पर ही चल रहे हैं ।