ईश्वर ने तीन बन्दर देखे। उन्होंने देखा कि एक बन्दर देखता और सुनता तो है मगर बोलता बिल्कुल नहीं है।
दूसरा बन्दर देखता और बोलता है मगर सुनता बिल्कुल नहीं है।
तीसरा बन्दर बोलता और सुनता है मगर देखता बिल्कुल नहीं है।
ऐसे बंदरों को देखकर आश्चर्यों के भी आश्चर्य ईश्वर को आश्चर्य हुआ और उन्होंने इन बंदरों के बारे में जिज्ञासा प्रकट की।
उन्हें मालूम हुआ कि ये गांधीजी के बन्दर हैं। दुनिया से कूच करने से पहले गांधीजी इनसे कह गए थे कि तुम्हें भविष्य में सुखी रहना है तो ऐसे ही रहना। इस बात का महत्व तुम आज नहीं समझोगे मगर जैसे-जैसे इस देश में चुनाव होते जाएंगे और लोकतंत्र `मजबूत` होता जाएगा, वैसे-वैसे तुम्हारे सामने मेरे कथनों की सच्चाई भी प्रकट होती जाएगी।
और एक दिन ऐसा आएगा कि तुम्हीं भारत के मनुष्य के आदर्श माने जाओगे। फिर एक दिन ऐसा भी आएगा कि मनुष्य फिर से बन्दर बनना चाहेगा।
Monday, March 24, 2008
Tuesday, March 18, 2008
चुहिया और बिलाव की प्रेमकथा
एक चुहिया अपने बिल से बाहर निकलने ही वाली थी कि उसकी नज़र बिलाव पर पड़ी, जो कि बाहर ही खड़ा था। चुहिया ने खुदा का शुक्र माना कि उसकी जान बच गयी।
वह बिल में खड़ी-खड़ी बिलाव के जाने का इन्तजार करने लगी। बिलाव मगर जमा हुआ था।टस से मस नहीं हो रहा था।
चुहिया एकटक बिलाव को देखे जा रही थीकि यह मरा कब जाए और वह कब बाहर निकले। धीरे-धीरे वह भूल गई कि यह बिलाव है और वह स्वयं चुहिया है और दोनों में छत्तीस का आंकडा है। वह बिलाव के काले-सफ़ेद रंग, उसकी पीली-चौकन्नी आंखों, मूछों, खड़े कानों, लंबे पैरों, ऊंचे कद पर मोहित हो गई। उसे महसूस हुआ कि यह है असली मर्द। एक मेरा चूहा है। बिल्कुल बेकार। दो कौड़ी का।
वह बिलाव के प्रेम में दीवानी हो गई और निकल गई साजन से मिलने।
लेकिन बेचारे बिलाव को चुहिया का हाले दिल क्या मालूम? उसे तो पता था कि वह बिलाव है और यह चुहिया है। उसका शिकार करना ही उसका धर्म है।
बिलाव अपना धर्म निबाहने के लिए लपका। उधर चुहिया कहती रही- ``बिलाव, माई लव। ``
वह बिल में खड़ी-खड़ी बिलाव के जाने का इन्तजार करने लगी। बिलाव मगर जमा हुआ था।टस से मस नहीं हो रहा था।
चुहिया एकटक बिलाव को देखे जा रही थीकि यह मरा कब जाए और वह कब बाहर निकले। धीरे-धीरे वह भूल गई कि यह बिलाव है और वह स्वयं चुहिया है और दोनों में छत्तीस का आंकडा है। वह बिलाव के काले-सफ़ेद रंग, उसकी पीली-चौकन्नी आंखों, मूछों, खड़े कानों, लंबे पैरों, ऊंचे कद पर मोहित हो गई। उसे महसूस हुआ कि यह है असली मर्द। एक मेरा चूहा है। बिल्कुल बेकार। दो कौड़ी का।
वह बिलाव के प्रेम में दीवानी हो गई और निकल गई साजन से मिलने।
लेकिन बेचारे बिलाव को चुहिया का हाले दिल क्या मालूम? उसे तो पता था कि वह बिलाव है और यह चुहिया है। उसका शिकार करना ही उसका धर्म है।
बिलाव अपना धर्म निबाहने के लिए लपका। उधर चुहिया कहती रही- ``बिलाव, माई लव। ``
Saturday, March 15, 2008
Subscribe to:
Posts (Atom)