Tuesday, March 18, 2008

चुहिया और बिलाव की प्रेमकथा

एक चुहिया अपने बिल से बाहर निकलने ही वाली थी कि उसकी नज़र बिलाव पर पड़ी, जो कि बाहर ही खड़ा था। चुहिया ने खुदा का शुक्र माना कि उसकी जान बच गयी।
वह बिल में खड़ी-खड़ी बिलाव के जाने का इन्तजार करने लगी। बिलाव मगर जमा हुआ था।टस से मस नहीं हो रहा था।
चुहिया एकटक बिलाव को देखे जा रही थीकि यह मरा कब जाए और वह कब बाहर निकले। धीरे-धीरे वह भूल गई कि यह बिलाव है और वह स्वयं चुहिया है और दोनों में छत्तीस का आंकडा है। वह बिलाव के काले-सफ़ेद रंग, उसकी पीली-चौकन्नी आंखों, मूछों, खड़े कानों, लंबे पैरों, ऊंचे कद पर मोहित हो गई। उसे महसूस हुआ कि यह है असली मर्द। एक मेरा चूहा है। बिल्कुल बेकार। दो कौड़ी का।
वह बिलाव के प्रेम में दीवानी हो गई और निकल गई साजन से मिलने।
लेकिन बेचारे बिलाव को चुहिया का हाले दिल क्या मालूम? उसे तो पता था कि वह बिलाव है और यह चुहिया है। उसका शिकार करना ही उसका धर्म है।
बिलाव अपना धर्म निबाहने के लिए लपका। उधर चुहिया कहती रही- ``बिलाव, माई लव। ``

13 comments:

रश्मि शर्मा said...

फि‍र साबि‍त हुआ, वाकई प्रेम अंधा होता है। बहुत बढि़या

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

हाँ! दोनों तरफ़ से.

अनिल रघुराज said...

चुहिया को ही ऐसा भ्रम क्यों हुआ, बिलाव को क्यों नहीं?

अर्चना राजहंस मधुकर said...

HELLO SIR

HOPE U ARE QUITE WELL

AFTER GONE THROUGH THIS SHORT STORY I RECIEVE MANY MESSAGE BUT I WANT TO KNOW WHAT MESSAGE U WANT TO REVEAL THROUGH THIS STORY???????

ARCHANA RAJHANS

Ek ziddi dhun said...

अर्चना जी, ये जल्दबाजी होगी कि लेखक तुरंत बताये कि वो क्या बताना चाहता है..आपने कहा कई मेसेज दे रही है ये रचना, ये किसी भी रचना के लिए बड़ी बात है कि उसके ढेर से सार्थक अर्थ जाते हों, पर आप बताईये कि आप ने किस-किस तरह देखा इसे.....अच्छा लगता है, अलग-अलग पाठक के विचार जानना किसी रचना पर

रवीन्द्र प्रभात said...

बहुत बढि़या लगा , किसी ने ठीक ही कहा है की प्रेम न बाड़ी उपजे , प्रेम न हाट बिकाए ....!

manjula said...

dil dimag par chhane lage to shayad yahi hota hai

rashmi said...

prem ki galiyo ke ye apne-apne dhokhe hai.......bus dhokhe...jinhe pa ker koi naumeed hota hai aur koi ise bhi apne prem ka uphaar samajhta hai...

विष्णु नागर said...

AAp sabka dhanyawad jo aapne is kahani k itna pasand kiya. Archanaji ne kuchh kaha hai aur Ek jidddi dhun ne uska jawab diya hai.Mera kahna hai ki jab yah kahani aapko bahut se arth de rahee hai to aap apne ko kisi ek arth tak simit karna kyon chahtee hain? Bhale hi vah arth lekhak ka ho.Itee sari anoogoonje jab yah rachna paida kar rahee hai to un sabko apne bheetar rahne deejiye.Vishn Nagar.

बोधिसत्व said...

वाकई प्रेम अंधा होता है। भ्रम बिलाव को क्यों नहीं?

Dr. Chandra Kumar Jain said...

आखेट-धर्म से अनजान
अंध-प्रेम को आँखें देती रचना !

भ्रम के बिल से बाहर आव
शायद यही कह रहा है बिलाव ?

Vinaykant Joshi said...

देखा, छुआ, जकडा, और आत्मसात कर लिया।
चुहिया ने सर्वस्व लुटा दिया ।
प्रेम को और क्या चाहिये ।
happy ending.

शायदा said...

अरे वाह, दोबारा पढ़ने को मिली आज ये। बहुत ही बढि़या है, मैंने खुद देखा है एक ऐसा मामला, जिन दिनों मेरे पास 13 बिल्लियां थीं। बहुत सारी कहानियां हैं उनकी मेरे पास। हम सब लंबे समय साथ रहे थे। प्रेम को तब भी मैंने ऐसा ही पाया था जैसा इसे पढ़ने के बाद, वो तो हमेशा से ऐसा ही है ना।