शुक्लाजी की समस्या
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शुक्ला ऐसा बहुत कुछ करता है
जिससे शुक्ला न लगकर तिवारी लगे
एतलिस्ट गुप्ता तो लगे ही
लेकिन इस चक्कर में वह ऐसा बहुत कुछ कर जाता है
जिससे वह वर्मा लगने लगता है
जिसे वह बिल्कुल पसंद नहीं करता
जो बनने कि वह सपने में भी नहीं सोचता
त्रासदी यह है कि वह संभले तब तक
लोग उसे वर्मा कहना शुरू कर देते हैं
वह कितना ही कहे वह वर्मा नहीं , शुक्ला है
कोई सुनता नहीं
शुक्ला इससे परेशान है
तिवारीजी और गुप्ताजी को इससे ख़ुशी बेहिसाब है।
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Wednesday, December 12, 2007
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4 comments:
ये कैसी कविता,
शुक्लाजी को वर्माजी बना दिया आपने,
अब वर्माजी को शर्माजी बना दीजिये,
थोड़ा सा और कर दीजिये कमाल,
बना दीजिये अवस्थीजी को अग्रवाल,
असली बात तो तब बनेगी,
जब जैकोब बन जाए जीवन राम,
असलम बने जगजीवन राम,
फिर पांडेयजी दोनों से कहें अस्सलाम,
वैसे कोई फर्क पड़ता है क्या.
अच्छा है सर...
वैसे मुझे कविता अधिक तो जानकारी नहीं है लेकिन क्या है कविता का नया रुप है
आशीष महर्षि
शुक्लाजी-वर्माजी... क्या बात है.
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