Thursday, September 27, 2007

राम भजन करो भाई कि चुनाव की बेला आई

भाजपा जब भजन करने लगे तो आजकल गधे भी समझ जाते हैं कि चुनाव आ रहे
हैं।और गधों को भी समझ में आ चुका है कि भाजपाई भजन का राज़ क्या है। आजकल भाजपा को रामसेतु को बचाने कि बहुत चिंता होने लगी है।राम रक्षा के लिए वे फिर मैदान में हैं , जैसे रामजी को खुद तो अपनी रक्षा करना आता नहीं ,सैकड़ों सालों से बेचारे इन्हीं के भरोसे तो ज़िंदा हैं अपने करोड़ों भक्तों के मन में । इन्हीं ने तो बाल्मिकी और तुलसीदास से रामजी की सिफारिश की थी कि इन पर ग्रंथ लिख दो । इनके कहने पर तो इन सज्जनों ने रामकथा लिखी थी । इनके भरोसे तो ये महाकवि भी बने हुये हैं वरना कौन पूछता बेचारों को। रामजी भी आज तक अमर हैं इन्हीं के भरोसे। करो भाई राम की रक्षा करो। उनका राम जन्मभूमि मंदिर तो तुम बना ही चुके हो अयोध्या में , अब उनका सेतु भी बचा लो , बड़ी किरपा होगी रामजी पर । आप तो पैदा ही हुये हो रामजी पर कृपा करने के वास्ते , उन पर कापी राइट है आपका । भगवान आपका भला करे। आपको सत्ता सुख अवश्य मिले। जैश्री राम ।

Wednesday, September 26, 2007

फालतू चीज़

फालतू चीज़
-------------

घर में कोई चीज़
फालतू नहीं थी
टूटा कंघा लगता था
अमर है
भरोसा था अब खोएगा भी नहीं

घड़ी बंद थी
पुरानी थी
उस दिन से बंद थी
जिस दिन गांधीजी मरे थे
मालूम था नहीं चलेगी
मगर तब की थी
जब पिताजी विद्यार्थी थे
आंखों के सामने बार-बार आ जाती थी

और एक तलवार थी
बहुत भारी
जंग लगी
पता नहीं किस पुरखे की थी
किससे लड़ने के काम आयी थी
बेचते डर लगता था
जीवन में लौट आयेगी

सारे घर में
एक ही चीज़ फालतू थी --
दरवाजा
सबको समान रूप से रोकता था
उसे मैंने सुबह से खुला छोड़ दिया है।
(बच्चे, पिता और माँ कविता - संग्रह से )
-----------------------------------

Tuesday, September 18, 2007

कित्ते खाऊ हैं

वे गरीबों में भी सबसे गरीबों का पिछले तीन सालों में ३१६०० करोड़ रुपये का अनाज खा गए.बहुत खाऊ हैं ना। क्या भेंजी कोई इत्ता खा सके है पर भगवान सौं वे इत्ता खा गए और डकार भी नी ली उन्होंने. इसका मतबल है कि गरीब का अनाज बहुत पौष्टिक होता हैगा.भेंजी मैं तो डर ही गयी। मैं सोची कि अब तो इनको टट्टी ज़रूर लगेगी , नहीं तो उल्टी तो ज़रूर होगी , नहीं तो खट्टी डकार तो ज़रूर से ज़रूर आयेगी और नहीं तो पेचिश होना तो पक्का है , कुछ ना कुछ तो होयेगा ही पर क्या बताऊँ उनको कुछ ना हुआ । ऐसों पर तो भगवान् भी बहोत दयालू रहता हेगा .और भेंजी मैं क्या देखी सब एक लाईन से बैठकर खा रहे थे , ना कोई किसी से जात पूछ रहा था , ना धरम,ना पार्टी , ना विचारधारा .कांग्रेसी और भाजपाई तो मरे जहाँ मिले जो मिले खा लेते हैं.इनको तो खाने की इत्ती आदत पड़ चुकी है कि लक्कड़ भी हजम पत्थर भी हजम .इनको तो मिलना चाहिए कुछ खाने को फिर तो ये लाज-शरम छोड़ कर खाने लगते हैं पर भेंजी मैं जब ये देखी कि गरीब का गेहूँ और चावल खाने के लिए सर्वदलीय सम्मेलन की तरह सर्वदलीय पंगत लगी है , समाजवादी भी खा रहे हैं , और कम्युनिस्ट भी, लालूजी की पार्टी के लोग भी खा रहे हैं तो राष्ट्रीय लोकदल के भी तो मेरी तो आँखें फटी कि फटी रह गयी । यूपीवाले खा रहे थे तो बंगालवाले भी, नॉर्थईस्टवाले भी,मध्यप्रदेशवाले भी ।ऎसी राष्ट्रीय एकता तो मैंने पहले कभी नहीं देखी.इससे तो लगता है भेंजी ये गरीब का कितना ख़्याल रखते हैं , बेचारे को दाल-रोटी -चावल खाने की तकलीफ देना भी नहीं चाहते । लोग कहते हैं वैश्वीकरण आ गया, वैश्वीकरण आ गया , अब गरीबों को कौन पूछता है पर ऎसी बात नहीं हैं कित्ता पूछते हैं गरीब को उसे तो मुँह से खाने की तकलीफ भी देना नहीं चाहते और खुद जल्दी -जल्दी खा जाते हैं और जितना मिले, जहाँ से मिले और गरीब का अनाज तो भेंजी छोड़ते ही नहीं.बहूत दयालू हैं ना ? भेंजी मेरे को तो अब पक्का विश्वास हो गया है कि गरीबी तो बहुत हट चुकी अब तो गरीब ही हटेगा पर भेंजी ये गरीब के गेहूँ चावल पर पेट पालनेवालों का क्या होगा?

Monday, September 17, 2007

ईश्वर की कहानियाँ -4

ईश्वर कल्पना करते थे कि धरती पर बच्चों के हाथों में बांसुरियां होंगी लेकिन जब उन्होंने देखा कि बच्चों के हाथों में पिस्तोलें हैं और ये उन्हें अमिताभ बच्चन ने थमाई हैं तो उनके विचार बदले कि इतनी सदियाँ बीत चुकीं हैं इस बीच आदमी ने स्वाभाविक है कुछ प्रगति भी की है।
------------------------------------------------------------------------------------
ईश्वर ईश्वर होकर भी उस दिन भूखे थे ।
दोपहर का वक्त था । दो आदमी बातें कर रहे थे ,'आदमी को बस आदमी का प्यार
चाहिए ।'
'और अगर दोपहर का एक बज चुका हो तो खाना भी चाहिए,'ईश्वर ने कहा लेकिन लोगों ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया।
(कृपया १३ सितंबर और इससे पहले की पोस्ट भी देखें.)

Thursday, September 13, 2007

कविताएं-3

व्यंग्य
----------
मैंने उन पर व्यंग्य लिखा
वही उनका सबसे अच्छा विज्ञापन निकला
वही मेरी सबसे कमाऊ रचना निकली
वही हिंदी साहित्य के इतिहास में समादृत भी हुई।

अपने बारे में सोचना
----------------------
अपने बारे में सोचना
उन्हें हमेशा दुनिया के बारे में सोचने जैसा लगता था

और इस तरह दुनिया के बारे में सोचना
उन्हें हमेशा अच्छा लगता था.

ईश्वर की कहानियाँ -3

एक भक्त ने पूछा -'भगवन आप अपनी पूजा पृथ्वी पर कराते हैं और रहते स्वर्ग में हैं , ऐसा अंतर्विरोध क्यों ?'
' इसलिये की बच्चे , घर की मुर्गी दाल बराबर होती है।'
------------------------------------------------------
ईश्वर से पूछा गया कि उन्हें कौनसा मौसम अच्छा लगता है -ठंड का या गर्मी का या बरसात का?
ईश्वर ने कहा-'मूर्ख मौसम का असर गरीबों पर पड़ता है,अमीरों और ईश्वर पर नहीं.'
------------------------------------------------------------------------------

Wednesday, September 12, 2007

कविताएं-2

माँ जब जगाने आयी
----------------------
नींद और गहरी हुई
माँ जब जगाने आयी
पेड़ हरे-हरे हुए
पहाड़ गहरे-गहरे।


माँ के शव के पास रातभर जागने की स्मृति
--------------------------------------------
सबेर हुई जा रही है
माँ को उठाना है

प्राण होते तो माँ खुद उठतीं

माँ को उठाना है
nahlana hai
नए कपड़े पहनाने हैं
अंत तक ले जाना है
स्मृति को मिटाना है .

ईश्वर की कहानियाँ -2

ईश्वर ने जब सुना कि एक आदमी अपने को ईश्वर बताकर लोगों को लूट रह है तो उन्होंने मुँह अँधेरे सारे शहर में पोस्टर लगवा दिए, 'नकली ईश्वर से सावधान .धोखा मत
खाइए।'
अगले दिन जवाबी पोस्टर लगे थे -'असली ईश्वर से सावधान । उसी के कारण आज दुनिया की यह हालत हो चुकी है।'
............................................................................................................
लहलहाती फसल को देखकर ईश्वर किसान से बोले,'बहुत पुण्यवान हो।'
'पुण्यवान और मैं ? पुण्यवान तो आपका वह सेठ है जिसका मैं कर्ज़दार हूँ और जिसके घर यह सारी फसल चली जायेगी.'

Tuesday, September 11, 2007

यह घर है

यह घर है
..............
यह घर है
इसमें एक बार कोई चीज़
खोयी तो मिली नहीं

मगर कुछ चीज़े कभी खोयी नहीं।
--------------------------------
चाक़ू
.........
चाकू खुद ह्त्या नहीं करता
और मदद तो वह
सब्जी काटने में भी करता है.

ईश्वर की कहानियाँ

मनुष्य के चोले में पृथ्वी पर आने से पहले ईश्वर को उन सबसे प्यार था , जो उनसे प्यार करते थे।

लेकिन पृथ्वी पर आने के बाद उन्होंने पाया कि वे ऐसे कई लोगों से नफ़रत करते हैं जो उनसे प्यार करते हैं और ऐसे कई लोगों से प्यार करते हैं जो उनसे नफ़रत करते हैं।



ईश्वर को पृथ्वी पर आये बहुत अरसा बीत चुका था .वह चलते-चलते प्रवचन सुनने रुक गए।

प्रवचनकर्ता ने कहा -ईश्वर अव्याखेय है ...

'हाँ बिल्कुल आदमी की तरह' ईश्वर बोल पड़े .
प्रवचनकर्ता ने उन्हें 'मूर्ख' कहा.ईश्वर ने बदले में उसे मूर्ख कहने कि बजाय वहां से चुपचाप चले जाना ठीक समझा.